Class 10 History Question Answer Chapter 8 LA

इस पेज में कक्षा 10 के सामाजिक विज्ञान (इतिहास) के अध्याय 8 - उपन्यास, समाज और इतिहास पाठ का दीर्घ उत्तरीय (Long Answer Type) प्रश्न उत्तर हिंदी में प्रस्तुत किया गया है ।

NCERT Solutions for Class 10 History Chapter 8 in Hindi (Long Question Answer)


1. उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में चार्ल्स डिकेन्स ने लिखा है। 'अथवा ' एक उपन्यासकार के रूप में चार्ल्स डिकन्स का मूल्यांकन करें।

उत्तर - चार्ल्स डिकेन्स- चार्ल्स डिकेन्स (1812-1870) अंग्रेजी साहित्य के महान लेखक माने जाते हैं। उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास आज भी बड़ी उत्सुकता और प्रेम से पढ़े जाते हैं। हार्ड टाइम्स और ओलिवर ट्विस्ट उनके कुछ महान उपन्यास थे। हार्ड टाइम्स में चार्ल्स डिकेन्स औद्योगिक क्रांति के लोगों में जीवन और चरित्र पर पड़े विनाशकारी प्रभावों के विषय में जमकर लिखते हैं उनका उन मजदूरों और कामगारों का चित्रण कितना मार्मिक है जो बेकार होकर शहरों में गली-गली मारे-मारे फिरने लगे। उद्योगपतियों के केवल लाभ की लालसा का उन्होंने खूब खण्डन किया। ओलिवर ट्विस्ट में भी डिकेन्स ने औद्योगिक क्रांति के विनाशकारी प्रभावों को ही अपना निशाना बनाया। चार्ल्स डिकेन्स एक सर्व प्रतिभाशाली लेखक थे। उन्होंने अनेक अन्य उपन्यास भी लिखें जो एक से एक बढ़िया हैं ऐसे उपन्यासों में 'पिक्विक पेपर्स', 'डेवडि कॉपरफील्ड', 'दी टेल आफ टू सीटीज', 'ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स आदि उपन्यासों के नाम विशेषकर उल्लेखनीय हैं। इन सभी उपन्यासों ने चार्ल्स डिकेन्स को अंग्रेजी साहित्य का एक महान लेखक बना दिया। आकर्षक कहानी के साथ-साथ विभिन्न व्यक्तियों का चरित्र डिकेन्स की मुख्य विशेषताएँ हैं। वे कुछ ऐसे महान लेखक हैं जो अपने जीवन में ही मशहूर हो गए।

2. उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें जिनके बारे में टॉमस हार्डी ने लिखा है। 'अथवा' एक उपन्यासकार के रूप में टॉमस हार्डी का मूल्यांकन करें।

उत्तर -  टॉमस हार्डी इंग्लैंड का एक अन्य महान उपन्यासकार था। उसने अपने उपन्यासों में ग्रामीण समुदायों, उनकी खुशियों तथा उनकी कमियों के साथ जुड़ने का भाव पैदा किया।हार्डी एक सर्व प्रतिभाशाली लेखक था जिसने एक के बाद एक बड़े शानदार उपन्यासों का सृजन किया। उनके कुछ महत्त्वपूर्ण उपन्यास इस प्रकार हैं- 'फार फ्रीम दी मड्डिग क्राउड', 'टैस', 'रिटर्न आफ दी नेटिव', 'मेयर आफ कैस्टरब्रिज', 'अण्डर दी ग्रीनवुड ट्रि', 'दी वुडलैंडर्स' इत्यादि। हार्डी प्रकृति के महान पुजारी थे और उनके द्वारा वनों, नदियों, घाटियों, पहाडों का विवरण इतना मनमोहक है कि पाठक यह सोचने लगता है कि वह स्वयं प्रकृति की गोद में बैठा है। हार्डी के उपन्यासों की पृष्ठभूमि ग्रामीण है जहाँ औद्योगीकरण और मशीनों का कोई बोलबाला नहीं। अपने एक उपन्यास ‘फार फ्रोम दी मेडिंग क्राउड' में हार्डी स्पष्ट लिखते हैं- यदि लोग सच्ची शांति, वफादारी, आपसी प्रेम चाहते हैं और जीवन का मजा उठाना चाहते हैं तो उन्हें शहरी क्षेत्रों को छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में पनाह लेनी चाहिए। हार्डी एक महान लेखक थे जो एक उपन्यासकार के अतिरिक्त एक उच्च कोटि के कवि भी थे। तभी तो उनके उपन्यासों में कविता का भी आनन्द आता है और आदमी खुशी से झूमने लगता है। 1900 के दशक में हार्डी अंग्रेजी साहित्य का सबसे चमकता हुआ सितारा बन चुके थे।

3.  बताएँ कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गईं। 'अथवा'  औपनिवेशिक भारत के उपन्यासकार एक राजनैतिक उद्देश्य के लिए लिख रहे थे।

उत्तर - भारतीय उपन्यासों ने एक अखिल भारतीय जुड़ाव या अपनापन का अहसास पैदा करने की हर संभव कोशिश की जो निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट होते हैं -

(क) उपन्यासों में अतीत के गौरवशाली परंपराओं एवं संस्कृति का वर्णन किया गया, जिसके कारण लोगों में एक साझे राष्ट्र के अहसास का जन्म हुआ। मराठों तथा राजपूतों के बारे में लिखे ऐतिहासिक उपन्यासों ने लोगों में एक अखिल भारतीय स्तर का जुड़ाव का अहसास पैदा किया।
(ख) साझा समाज के साथ को मूर्त रूप देने के लिए उपन्यासों में, समाज के हर तबके के लोगों को पात्र बनाया गया। रोमांस तथा त्याग एवं बलिदान की भावनाओं से ओत-प्रोत ऐसे राष्ट्र की कल्पना की, जो 19 वीं सदी की गलियों तथा कार्यालयों में नहीं पाए जा सकते थे।
(ग) उपन्यासों द्वारा कल्पित राष्ट्र इतना अधिक शक्तिशाली था कि उसने वास्तव में राजनीतिक आंदोलनों को प्रेरणा देना आरम्भ कर दिया। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का आनन्द मठ (1882) इसका एक सुन्दर उदाहरण है।
(घ) भारतीय उपन्यासों में कल्पित राष्ट्र रूमानी साहस, वीरता और त्याग से ओत-प्रोत था। भूदेब मुखोपाध्याय ने अपनी रचना अँगुरिया बिनिमाँय (1857) बंगाल का पहला ऐतिहासिक उपन्यास था। इसमें शिवाजी हिंदुओं की आजादी के लिए लड़ रहे राष्ट्रवादी नायक हैं।
(ङ) उपन्यासों में लोगों को एक ऐसे संघर्षरत समूह के रूप में दिखाया गया जिनका एक राष्ट्र था तथा विदेशी सत्ता से स्वतंत्र होना जिनका उद्देश्य था।

4. औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह औपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था ?

उत्तर- (क) अंग्रेजों ने उपन्यासों में उपलब्ध देशी जीवन एवं रीति-रिवाज, पूजा-पाठ उनके विश्वास और आचार आदि से जुड़ी जानकारियाँ एकत्रित की। ये सब अंग्रेजों के लिए जानना बहुत आवश्यक था क्योंकि वे अपनी औपनिवेशिक प्रजा पर शासन करना चाहते थे।
(ख) हिंदुस्तानियों ने उपन्यासों का इस्तेमाल समाज में जो उनकी नजर में बुराइयाँ थीं, उनकी आलोचना करने और उनके इलाज सुझाने के लिए किया।
(ग) उपन्यासों की मदद से भूत के साथ रिश्ता तय किया गया उन्होंने अपने पाठकों में राष्ट्रीय गौरव की भावना का संचार किया।
(घ) उपन्यासों के प्रकाशन के कारण पहली बार भाषाई विविधताएँ (स्थानीय,क्षेत्रीय) छपाई की दुनिया में दाखिल हुई।
(ङ) जिस तरह से चरित्र उपन्यास में बोलते थे उससे उनके क्षेत्र, भाषा या जाति का अनुमान लगाया जा सकता था। इस प्रकार, उपन्यास के जरिए लोग यह जान पाए कि उनके इलाके के लोग उनकी भाषा किस तरह अलग ढंग से बोलते हैं।

5. मुंशी प्रेमचन्द का हिन्दी साहित्य में क्या स्थान है ?

उत्तर - मुंशी प्रेमचन्द (1880-1936) - मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी और उर्दू साहित्य के एक महान लेखक थे। उन्होंने कोई 300 के लगभग कहानियाँ, एक दर्जन के लगभग उपन्यास और दो नाटक भी लिखे। उपन्यास के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं था। उनके कुछ प्रसिद्ध उपन्यासों में गोदान, रंगभूमि, निर्मला, सेवासदन और मजदूर आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। अपने उपन्यासों में उन्होंने जिन व्यक्तियों का चित्रण किया है, वे इतने करीब लगते हैं मानो कि वे हमारे आस-पास घूम रहे हों। उनके नायक और नायिकाएँ समाज के सभी वर्गों से संबंधित हैं। उनके अपने गुण और अवगुण हैं, उनकी अपनी-अपनी आदते हैं, विचार हैं, खुशियाँ और गमियाँ हैं। उनके नायकों से आप प्यार करने लगेंगे और खलनायकों से उतनी ही घृणा। आप कहीं पर नवाबजादों से मिलते हैं, कही जमींदारों से तो कभी किसानों से, कभी पंडितों से तो कहीं मौलवियों से। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि उन्होंने समाज के किसी भी वर्ग या किसी भी व्यवसायी को नहीं छोड़ा। जिसका चित्रण उन्होंने न किया हो। उनके रंगभूमि के उपन्यास का नायक एक गरीब आदमी है जो निचली जाति से संबंध रखता है उसे संघर्ष करते हुए दिखाया गया जब उसके खेत को जबर्दस्ती उससे छीना जा रहा था ताकि वहाँ तम्बाकू की एक फैक्ट्री लगाई जा सके। उसके मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं परन्तु वह रंगभूमि में एक सिपाही की तरह लगता है और अंत में विजय उसी की होती है। वास्तव में हार्डी की भांति मुंशी प्रेमचन्द भी इस उपन्यास में औद्योगिक क्रांति के कुछ तारीक पहलुओं को दिखाने का प्रयत्न करते हैं। अपने एक अन्य उपन्यास 'गोदान' में मुंशी प्रेमचन्द एक किसान जोड़े होरी और उसकी पत्नी धुनिया को दिखाते हैं जो सभी प्रकार के शोषण का डटकर सामना करते हैं, चाहे वे जमींदार थे, सूदखोर थे, धार्मिक पुजारी थे या फिर साम्राज्यवादी अधिकारी थे। परन्तु अंत में विजय इस किसान जोड़े की ही होती है और वे अंत तक अपना सम्मान बनाए रखने में सफल रहते हैं।

6. बताएँ कि किस तरह से भारत में उपन्यासों में जातिवाद को मिलाया गया है। दो उपन्यासों को संदर्भ देते हुए स्पष्ट करें कि वे पाठकों के लिए किस तरह से कहते हैं कि वर्तमान सामाजिक ढाँचे की समस्याओं का हल निकल सके ।

उत्तर - पोथेरी कुंजाम्बू जो केरल का एक निम्न वर्गीय लेखक था। उसने एक उपन्यास लिखा - सरस्वती विजयम (1892) यह जातीय दमन पर गहरा कटाक्ष था। इस उपन्यास में एक युवा व्यक्ति को दिखाया गया है। जो निम्न वर्ग का है। अपने गाँव के ब्राह्मण जमींदार की यातनाओं के भय से वह गाँव छोड़ कर भाग गया। उसने धर्म परिवर्तन करके इसाई धर्म अपना लिया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, वह एक जज के रूप में स्थानीय कोर्ट में नियुक्त हुआ। उसी दौरान गाँव के लोग समझने लगे कि जमींदार के आदमियों ने उसकी हत्या कर दी है। अतः उन्होंने जमींदार के विरुद्ध मुकदमा दायर करवा दिया। अंततः ट्रायल के दौरान, जज ने अपनी असली पहचान बतलाई । नाम्बूदरी को अपने किए पर पछतावा हुआ और उसने अपने आप को सुधारने का प्रयास किया। सरस्वती विजयम् शिक्षा के महत्व पर जोर देता है। जिसके द्वारा निम्न वर्ग का उद्धार हो सकता है। 1920 से बंगाल में भी एक नए तरह का उपन्यास उभरकर सामने आया, जिसमें किसानों और निम्न जातियों को दर्शाया गया है। अदैत्य मल्ला बर्मन का उपन्यास (1914-1951) "टिताश ऐकता नादीद नाम” (1856) एक मल्लाहों  की पुराण कथा है। यह एक मछुआरों की ऐसी जाति है जो मछली पकड़ने के लिए टिताश नदी के किनारे रहती है। यह उपन्यास मल्लाहों की तीन पीढ़ियों पर है जिनपर एक के बाद एक संकट के बादल मंडराने लगे थे।

© Spr Educational
Previous Post Next Post