( प्रस्तावना और माप )
(General Introduction & Measurement)
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
Short Answer Type Questions
प्रश्न 1. भौतिकी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- भौतिकी (Physics) :- भौतिकी प्राकृतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत द्रव्य एवं ऊर्जा के बीच पारस्परिक विनिमय का अध्ययन किया जाता है।
भौतिकी का कोई जनक नहीं है । भौतिकी के मर्मज्ञ के मात्र रूप में वैज्ञानिकों का नाम लिया जा सकता है। भौतिकी की मर्मज्ञता हासिल करने के लिए पहले सैद्धान्तिक पक्ष का गहन अध्ययन कर उसके आंकिकी का हल करना आवश्यक है क्योंकि सैद्धान्तिक बातें आहार तथा आंकिकी व्यायाम हैं। भौतिकी के लिए गणित आवश्यक है। यह मूल रूप से माप-तौल का विज्ञान है।
प्रश्न 2. द्रव्य की तीन अवस्थाएँ या प्रकार क्या हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर- द्रव्य की तीन अवस्थाएँ/प्रकार निम्नलिखित हैं :-
(क) ठोस, (ख) द्रव तथा (ग) गैस।
ठोस (Solids) - जिनके आकार और आयतन दोनों निश्चित होते हैं वे पदार्थ ठोस कहलाते हैं। इनके अणु बिल्कुल नजदीक में व्यवस्थित होते हैं तथा जिनके बीच लगने वाले आणविक बल अत्यन्त प्रबल होते हैं।
द्रव (Liquids) - जिनके आयतन तो निश्चित किन्तु आकार अनिश्चित होते हैं वे पदार्थ द्रव कहलाते हैं । इसके अणु ठोस की तुलना में दूर-दूर होते हैं तथा उनके बीच लगने वाले आणविक बल बहुत क्षीण होते हैं। इसलिए इसे जिस बर्तन में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है। इसमें प्रवाहित होने का भी गुण होता है।
गैस (Gases) - जिनके आकार और आयतन दोनों अनिश्चित होते हैं वे पदार्थ गैस कहलाते हैं । इनके अणु अत्यधिक दूर-दूर होते हैं। इसलिए उनके बीच लगने वाले आण्विक बल नगण्य होते हैं।
प्रश्न 3. प्रकृति के नियम, परिकल्पना, सिद्धान्त तथा निकाय क्या हैं ?
उत्तर- प्रकृति के नियम (Law of Nature) :- प्राकृतिक घटनाएँ जिन नियमों के तहत घटित होती हैं, उन्हें प्रकृति के नियम कहते हैं । यह शाश्वत होता है । जैसे - न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम।
परिकल्पना (Hypothesis) - प्रेक्षणों या प्रायोगिक परिणामों की व्याख्या करने के लिए प्रारम्भिक तौर पर बनाए गए कार्यकारी नियम को जिसका अन्तिम सत्यापन नहीं हुआ है, परिकल्पना कहते हैं।
सिद्धान्त (Theory) - प्रकृति के ज्ञात नियमों के पदों में भौतिक निकायों की व्याख्या करने के लिए प्रयोगों द्वारा सत्यापित परिकल्पना को सिद्धान्त कहते हैं।
निकाय (Systems)- कई कणों या वस्तुओं से मिलकर बने हुए व्यवस्था/प्रबंध को निकाय कहते हैं।
प्रश्न 4. नियम तथा सिद्धान्त में क्या अंतर है ?
उत्तर -
● नियम यह बताता है कि प्रकृति किस प्रकार व्यवहार करती है। यह शाश्वत तथा अपरिवर्तनीय होता है । किसी भी भौतिक प्रक्रिया में नियम का उल्लंघन नहीं होता है।
● सिद्धान्त प्रेक्षणों या प्रायोगिक परिणामों की व्याख्या करने के लिए ज्ञात नियमों की सहायता से बनाया जाता है । आवश्यकतानुसार इसमें परिवर्तन भी किया जाता है।
प्रश्न 5. वैज्ञानिक विधि क्या है ? इसके मुख्य चरण कौन-कौन हैं ? इसके महत्त्वों को लिखें।
उत्तर- वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) - अनुसंधान कार्य के लिए वैज्ञानिकों द्वारा अपनायी गयी सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं तर्कसंगत विधि को वैज्ञानिक विधि कहते हैं।
● इसके मुख्यत: निम्नलिखित चार चरण हैं-
(क) क्रमबद्ध प्रेक्षण,
(ख) परिकल्पना का निर्माण
(ग) परिकल्पना का परीक्षण
(घ) अन्तिम सिद्धान्त
● महत्त्व - वैज्ञानिक विधि अपनाये जाने के कारण अनुसंधान कार्य में तेजी आती है, फलस्वरूप विज्ञान दिनों-दिन प्रगति की तरफ अग्रसर है। इससे व्यक्तिगत, सामाजिक या राष्ट्रीय समस्याओं का भी संतोषजनक समाधान ढूँढा जा सकता है।
प्रश्न 6. भौतिकी की व्याप्ति तथा उद्दीप्ति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- भौतिकी की व्याप्ति तथा उद्दीप्ति (Scope and Excitement of Physics) :- भौतिकी में अनेक भौतिक घटनाओं एवं अनुभवों की व्याख्या की जाती है। यह उद्दीप्ति के साथ-साथ शिक्षाप्रद होती है ।जैसे- पेड़ से फल का गिरना गुरुत्व का ज्ञान देता है। किसी द्रव के बूंदों का गोलाकार होने से इसके पृष्ठ-तनाव की जानकारी होती है। वाष्प के ऊष्मीय ऊर्जा से वाष्प इंजन कार्य करता है। धातु के पीटने से ध्वनि उत्पन होती है। तारों से आने वाले प्रकाश से तारों के विषय में जानकारी होती है। विद्युत् के अध्ययन से डायनेमो, मोटर के साथ-साथ ट्यूब लाइटों के विषय में जानकारी होती है। आधुनिक भौतिकी के अध्ययन से मुख्यत: पदार्थों की परमाण्विक संरचना एवं स्थूल जगत में उनके उपयोग की जानकारी के साथ-साथ ट्रान्जिस्टर सेटों, टेलीविजन सेटों, कम्प्यूटरों के इलेक्ट्रॉनिक परिपथों के तार्किक कारणों की जानकारी होती है। रोबोट लेसर मेसर, एस. टी. डी., आई. एस. डी., फैक्स आदि भौतिकी की देन तो अत्यन्त ही रोमांचकारी है।
प्रश्न 7. भौतिकी तथा जीव विज्ञान में आपसी सम्बन्धों का उल्लेख करें।
उत्तर- भौतिकी तथा जीव विज्ञान का सम्बन्ध :-
भौतिकी के नियमों तथा उसके तकनीकों का उपयोग जीव विज्ञान में भी हो रहा है। जैसे-
(क) जीव विज्ञान में प्रयुक्त होने वाले सूक्ष्मदर्शी (सरल, संयुक्त तथा इलेक्ट्रॉन) भौतिकी की ही देन है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से कोशिका की संख्या आसानी से समझा जाता है।
(ख) X-किरणों द्वारा टूटी हुई हड्डी या शरीर में घुसे गोली, सूई आदि का पता किया जाता है। साथ ही इसके उपयोग से कैंसर रोग का भी उपचार किया जाता है। इस सम्बन्ध से ही जीव-भौतिकी का विकास हुआ है। इसके अन्तर्गत भौतिकी के नियमों का उपयोग कर रक्तचाप, श्वसन, नेत्रों द्वारा प्रतिबिम्ब बनने आदि का अध्ययन किया जाता है।
प्रश्न 8. भौतिकी का प्रौद्योगिकी (अभियंत्रण) से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर- भौतिकी का प्रौद्योगिकी (अभियंत्रण) से सम्बन्ध :-
भौतिकी वैज्ञानिक नियमों तथा सिद्धांतों को प्रदान करता है, जिनका उपयोग प्रौद्योगिकी (अभियंत्रण) में होता है। भौतिकी के नियमों एवं सिद्धान्तों की सहायता से असंसाधनों को संसाधनों में परिवर्तित करने
की प्रक्रिया को प्रौद्योगिकी कहते हैं । आधुनिक प्रौद्योगिकी को अनुप्रयुक्त भौतिकी माना जाता है। जैसे-
(क) आकाश और द्रव्य में विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों के संचरण के सिद्धान्त से रेडियो, टेलीविजन, राडार आदि का विकास हुआ।
(ख) सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के नियम से विभिन्न प्रकार के अन्तरिक्षयानों और उपग्रहों का प्रक्षेपण सम्भव हुआ।
(ग) ऊष्मागतिकी के सिद्धान्तों से ऊष्मा इंजन का विकास हुआ।
(घ) X-किरणों द्वारा शरीर के किसी क्षतिग्रस्त हड्डी की जाँच एवं कैंसर रोग की रोकथाम के साथ-साथ स्मगलिंग की रोकथाम किये जाते हैं।
(ङ) विद्युत, जल-विद्युत संयंत्र, नाभिकीय शक्ति स्टेशन (रियेक्टर) तथा ऊष्मा-शक्ति संयंत्र सभी भौतिकी का परिणाम है।
(च) ट्रांसफार्मर, प्रेरण कुण्डली, डायनेमो, जनित्र आदि का निर्माण विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के नियमों के आधार पर किया गया है।
(छ) लीवर निकाय, घिरनी एवं नतसमतल के सिद्धान्त पर विभिन्न प्रकार के मशीन बने ।
(ज) अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिक परिपथ के आंकिक तर्क के आधार पर कलकुलेटर एवं कम्प्यूटर बनाए गए।
प्रश्न 9. मात्रकों के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर- मात्रकों में निम्नलिखित गुण अनिवार्य हैं-
(क) मात्रक का परिमाण सामान्यत: राशि का संख्यांक न बहुत बड़ा और न ही बहुत छोटा होना चाहिए।
(ख) पूर्णत: निश्चित और स्पष्ट रूप से परिभाषित होनी चाहिए।
(ग) समय के साथ इसमें परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
(घ) उसमें स्थायित्व का गुण होना चाहिए।
(ङ) अन्य मात्रकों से तुलना सम्भव होना चाहिए।
(च) सर्वमान्य होना चाहिए।
(छ) सभी स्थानों में आसानी से पुनरुत्पादित होने चाहिए।
प्रश्न 10. मूल मात्रक तथा व्युत्पन्न मात्रक में क्या अन्तर है ?
उत्तर- मूल मात्रक तथा व्युत्पन्न मात्रक में अन्तर :--
● मूल मात्रक
(क) मूल राशियों के मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं।
(ख) ये मात्रक एक-दूसरे से पूर्णत: स्वतंत्र होते हैं।
(ग) S.I. पद्धति में सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मूल मात्रक हैं।
● व्युत्पन्न मात्रक
(क) व्युत्पन्न राशियों के मात्रक को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं।
(ख) ये मात्रक मूल मात्रक पर निर्भर करते हैं।
(ग) व्युत्पन्न मात्रकों की संख्या सीमित नहीं है ।
प्रश्न 11. S.I. मात्रक में सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मात्रक तथा उसके मानों एवं संकेतों को लिखें।
उत्तर- S.I. मात्रक में निम्नलिखित सात भौतिक राशियों के सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मात्रक के मान निम्नलिखित हैं:-
प्रश्न 10. मूल मात्रक तथा व्युत्पन्न मात्रक में क्या अन्तर है ?
उत्तर- मूल मात्रक तथा व्युत्पन्न मात्रक में अन्तर :--
● मूल मात्रक
(क) मूल राशियों के मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं।
(ख) ये मात्रक एक-दूसरे से पूर्णत: स्वतंत्र होते हैं।
(ग) S.I. पद्धति में सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मूल मात्रक हैं।
● व्युत्पन्न मात्रक
(क) व्युत्पन्न राशियों के मात्रक को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं।
(ख) ये मात्रक मूल मात्रक पर निर्भर करते हैं।
(ग) व्युत्पन्न मात्रकों की संख्या सीमित नहीं है ।
प्रश्न 11. S.I. मात्रक में सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मात्रक तथा उसके मानों एवं संकेतों को लिखें।
उत्तर- S.I. मात्रक में निम्नलिखित सात भौतिक राशियों के सात मूल मात्रक तथा दो पूरक मात्रक के मान निम्नलिखित हैं:-
प्रश्न 12. S.I.मात्रकों को लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर- S.I. मात्रकों को लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :-
(क) मात्रकों के संकेतों को अंग्रेजी वर्णमाला के छोटे अक्षरों में लिखा जाता है। जैसे- मीटर के लिए m तथा किलोग्राम के लिए kg आदि । किन्तु, यदि मात्रक किसी वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया। है तो संकेत को बड़े अक्षरों में लिखा जाता है । जैसे- ऐम्पियर के लिए A, केल्विन के लिए K आदि । जब वैज्ञानिक के नाम पर मात्रक संकेत में नहीं लिखना होता है तो प्रथम अक्षर भी छोटे अक्षरों में लिखा जाता है । जैसे—क्यूरी के लिए curie, फैराड के लिए farad आदि।
(ख) मात्रकों के संकेतों को हमेशा एक वचन के रूप में लिखा जाता है। जैसे-10 m या 20 kg आदि।
(ग) मात्रकों के संकेतों के आगे कोई विराम चिह्न नहीं लगाया जाता है। जैसे- 4 m, 50 kg आदि।
(घ) मात्रकों का पूरा नाम अंग्रेजी में लिखते समय समस्त अक्षर छोटे अक्षर होने चाहिए। जैसे- लम्बाई का मात्रक metre, विद्युत धारा का मात्रक ampere लिखना चाहिए।
प्रश्न 13. S.I.पद्धति की विशेषताओं या लाभों का वर्णन करें।
उत्तर- S.I. पद्धति की निम्नलिखित विशेषताएँ या लाभ हैं :-
(क) यह एक युक्तियुक्त पद्धति है । इसमें एक भौतिकी राशि का केवल एक ही मात्रक होता है । जैसे - सभी प्रकार के ऊर्जाओं का मात्रक जूल है।
(ख) यह भी दाशमिक पद्धति है।
(ग) यह एक सम्बद्ध पद्धति है। इसमें सभी व्युत्पन्न मात्रक, मूल और पूरक मात्रकों के केवल गुणा और भाग द्वारा प्राप्त किये जाते हैं।
(घ) यह एक अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति है।
(ङ) यह प्रौद्योगिकी, औद्योगिकी, वाणिज्य आदि सभी शाखाओं में व्यवहार में लाये जाते हैं।
प्रश्न 14. विमीय समीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- विमीय समीकरण (Dimensional Equation) :-
वह समीकरण जो किसी भौतिक राशि के व्युत्पन्न मात्रक का सम्बन्ध मूल मात्रकों के उचित घातों द्वारा प्रदर्शित करता है, विमीय समीकरण
कहलाता है।
यांत्रिकी में किसी भौतिक राशि X के विमीय समीकरण को निम्नलिखित प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है :-
[X] = [ MᵃLᵇTᶜ ]
अत: विभिन्न भौतिक राशियों के विमीय समीकरण निम्नलिखित होते हैं :-
वेग का विमीय समीकरण [v] = [ M⁰LT⁻¹ ]
त्वरण का विमीय समीकरण [a] = [ M⁰LT⁻² ]
बल का विमीय समीकरण [F] = [ MLT⁻² ]
कार्य या ऊर्जा का विमीय समीकरण [W] या [E] = [ ML² T⁻² ]
शक्ति का विमीय समीकरण [P] = [ ML²T⁻³ ]
प्रश्न 15. विमीय समीकरण के क्या उपयोग हैं ?
उत्तर- विमीय समीकरण के निम्नलिखित उपयोग हैं :-
(क) भौतिक समीकरणों की शुद्धता की जाँच करना।
(ख) भौतिक राशियों का पारस्परिक सम्बन्ध ज्ञात करना।
(ग) एक पद्धति के मात्रकों को दूसरी पद्धति के मात्रकों में बदलना।
(घ) किसी भौतिक राशि का मात्रक ज्ञात करना।
प्रश्न 16. विमीय विश्लेषण की क्या सीमाएँ हैं ?
उत्तर- विमीय विश्लेषण की निम्नलिखित सीमाएँ हैं :-
(क) किसी भी भौतिक समीकरण में उपस्थित शुद्ध संख्या या विमाहीन राशियाँ या नियतांक, चर या अचर के विषय में कुछ जानकारी नहीं मिलती है या उसका मान ज्ञात नहीं किया जा सकता है।
(ख) कोई भौतिक राशि लम्बाई, द्रव्यमान और समय के अतिरिक्त अन्य मात्रकों पर निर्भर करती है तो उसका विमीय सूत्र ज्ञात नहीं किया जा सकता है।
(ग) किसी भी भौतिक समीकरण में उपस्थित त्रिकोणमितीय, लघुगणकीय और चार घातांकीय पदों के विषय में कोई सूचना नहीं प्राप्त होती है।
(घ) किसी भौतिक समीकरण का दायाँ पक्ष से दो या अधिक पदों के योग या अन्तर के रूप में होने पर इसको जाँचा तो जा सकता है किन्तु उसे स्थापित या उसकी व्युत्पत्ति नहीं हो सकती है।
(ङ) मूल राशियों की संख्या के बराबर अधिकतम समीकरण लिखे जा सकते हैं, जिनकी संख्या के घात ज्ञात करने होते हैं, मूल राशियों की संख्या से अधिक होने पर यह असफल हो जाती है।
(च) विमीय नियतांक वाले भौतिक समीकरण की जाँच या व्युत्पति नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 17. शून्यांक त्रुटि तथा अल्पतमांक त्रुटि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- ● शून्यांक त्रुटि (Zero Error) :-
जब प्रायोगिक उपकरणों में प्रारम्भिक स्थिति में मुख्य स्केल और वर्नियर के शून्य चिह्न एक ही सीध में नहीं होता है, तो उससे मापन में होने वाली त्रुटि को शून्यांक त्रटि कहते हैं । वर्निचर केलिपर्स, स्क्रगेज, स्फेरोमापी आदि में उसे दर करने के लिए प्रेक्षित पठन में से शून्यांक त्रुटि को चिह्न सहित घटाना चाहिए।
● अल्पतमांक त्रुटि- वह न्यूनतम दूरी जिसे किसी उपकरण द्वारा शुद्धतापूर्वक ज्ञात किया जाता है, उस उपकरण का अल्पतमांक कहलाता है। जैसे- साधारण मीटर स्केल का अल्पतमांक 0.1 सेमी. है।
अत: इससे 0.1 सेमी. तक की लम्बाई को शुद्धतापूर्वक ज्ञात किया जा सकता है। प्रत्येक उपकरण में यथार्थता की एक सीमा होती है जिसके कारण उससे मापन में उपस्थित होने वाली त्रुटि का अल्पतमांक या अनुमेय त्रुटि कहते हैं।
प्रश्न 18. त्रुटियों का संयोजन (Combination of Errors) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- जब कोई भौतिक राशि एक से अधिक भौतिक राशियों पर निर्भर करती है तो प्रत्येक भौतिक राशि के मापन में होने वाली त्रुटियों का संयुक्त प्रभाव उसकी त्रुटि का निर्धारण करता है। इसे ही त्रुटियों का संयोजन कहते हैं।
(क) जब दो भौतिक राशियाँ जोड़ी जाती हैं तो अन्तिम परिणाम में अधिकतम निरपेक्ष त्रुटि उन राशियों की निरपेक्ष त्रुटियों के योगफल के बराबर होती है। जब Z = A + B में निरपेक्ष त्रुटि ∆Z ज्ञात करनी हो, तो अधिकतम त्रुटि ∆Z = ∆A + ∆B, जहाँ ∆A तथा ∆B क्रमश: A तथा B दो भौतिक राशियों के त्रुटियों के परिणाम हैं।
(ख) जब दो भौतिक राशियों का अन्तर ज्ञात किया जाता है, तो अन्तिम परिणाम में अधिकतम निरपेक्ष त्रुटि उन राशियों की त्रुटियों के योगफल के बराबर होती है। जब Z = A - B में निरपेक्ष त्रुटि ∆Z ज्ञात करनी हो, तो ∆Z = ∆A - ∆B या ∆A + ∆B होती है।
(ग) जब दो भौतिक राशियों को गुणा किया जाता है तो अन्तिम परिणाम में अधिकतम भिन्नात्मक त्रुटि उनकी भिन्नात्मक त्रुटियों के योगफल के बराबर होती है। जब Z = AB में निरपेक्ष त्रुटि ∆Z ज्ञात करनी हो, तो ∆Z/Z = ∆A/A + ∆B/B होती है।
(घ) जब दो राशियों के विभाजन में अधिकतम भिन्नात्मक त्रुटि उनकी भिन्नात्मक त्रुटियों के योगफल के बराबर होती है। जब Z = A/B में निरपेक्ष त्रुटि ∆Z ज्ञात करनी हो तो ∆Z/Z = ∆A/A + ∆B/B
(ङ) जब किसी भौतिक राशि का घात लिया जाता है तो अधिकतम भिन्नात्मक त्रुटि उसकी भिन्नात्मक त्रुटि की n गुनी होती है, जहाँ n घातांक है । जब Z = Aⁿ में अधिकतम भिन्नात्मक त्रुटि
∆Z/Z = n∆A/A होती है।
प्रश्न 19. मानक विचलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- मानक विचलन (Standard Deviation) :-
यह सभी विचलनों के वर्गों के समान्तर माध्य के वर्गमूल के बराबर होता है जबकि विचलन प्रेक्षकों के समान्तर माध्य से प्राप्त किया जाता है। इसे σ² से व्यक्त किया जाता है।
अतः σ² = 1/nΣfx²
या σ² = Σfx²/Σδ
सामान्यतः σ² = 1/ₙ Σf(x - m)² ,
जहाँ x वर्ग का मध्य ( चर का मान ) है। f वर्ग की आवृति है तथा m उसका समान्तर माध्य है। मुख्यरूप से प्रामाणिक विचलन वर्ग माध्य मूल विचलन का ही एक विशेष रूप है, जिसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जाता है -
S² = 1/ₙ ΣΖ, जहाँ Z माने गए माध्य A से X का विचलन है। यदि M - A = d हो, तो S² = σ + d² होता है। अत: मानक विचलन न्यूनतम वर्ग माध्य मूल का विचलन होता है।
प्रश्न 20. सार्थक अंक ज्ञात करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है ?
उत्तर- सार्थक अंक ज्ञात करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है :-
(क) किसी संख्या में दशमलव का स्थान परिवर्तित कर देने पर भी सार्थक अंकों की संख्या वही रहती है। जैसे-1.234 और 123.4 में सार्थक अंकों की संख्या 4 है।
(ख) दो अशून्य संख्याओं के बीच के सभी शून्य सार्थक अंक होते हैं। जैसे- 3100.05 में सार्थक अंकों की संख्या 6 है।
(ग) प्रथम अशून्य संख्या के बायीं तरफ के सभी शून्य सार्थक नहीं माने जाते हैं. जबकि दायीं तरफ में आने वाले सभी शून्य सार्थक अंक माने जाते हैं। जैसे- 0.007 में सार्थक अंक 1 तथा 6.320 में सार्थक अंक 4 हैं।
(घ) दशमलव रहित संख्या के दायीं तरफ अंत में आने वाले शून्य सार्थक नहीं होते हैं। जैसे- 6320 में सार्थक अंक 3 तथा 13200 में भी सार्थक अंक 3 ही हैं। किन्तु माप से प्राप्त होने पर अंत के शून्य भी सार्थक अंक होते हैं। जैसे- 200 मीटर माप में सार्थक अंक 3 होती हैं।
(ङ) घात के रूप में व्यक्त संख्या में 10 और उसकी घात को सार्थक अंक की गिनती में नहीं लिया जाता है । जैसे- 3.21 X 10⁹ में सार्थक अंक 3 है।
(च) मात्रक बदल लेने पर सार्थक अंकों की संख्या अप्रभावित रहती है।
जैसे- 0.0432 मीटर = 4.32 सेमी. = 43.2 मिमी. में सार्थक अंक 3 हैं।
प्रश्न 21. दी गयी संख्या को निश्चित अंक वाली सार्थक संख्या में परिवर्तन के नियमों को लिखें।
उत्तर- दी गयी संख्या को निश्चित अंक वाली सार्थक संख्या में परिवर्तन के नियम निम्नलिखित हैं :-
(क) यदि निश्चित अंकों के बाद छोड़ा जाने वाला अंक 5 से कम है तो उसके पूर्व के अंश को अपरिवर्तित रखा जाता है किन्तु यदि छोड़े जाने वाले अंक 5 से अधिक है तो उसके पूर्व के अंक का एक से बढ़ा दिया जाता है।
(ख) यदि छोड़ा जाने वाला अंक 5 है तो उसके पूर्व विषम अंक आने पर उसे एक से बढ़ा दिया जाता है किन्तु सम संख्या की स्थिति में उसे अपरिवर्तित रखा जाता है।
प्रश्न 22. चरघातांकी संकेतन से आप क्या समझते हैं ? परिमाण की कोटि ज्ञात करने की विधि क्या है ?
उत्तर- चरघातांकी संकेतन (Exponential Notation) :-
भौतिकी में अनेक छोटी-से-छोटी तथा बड़ी-से-बड़ी राशियाँ उपयोग में आती हैं। जैसे-हाइड्रोजन परमाणु की त्रिज्या 0.00000000000053 मीटर है। ऐसी राशियों को 1 तथा 10 के बीच एक संख्या तथा 10 के उपयुक्त घातों के गुणनफल के रूप में 5.3×10⁻¹¹ लिखा जाता है । संख्या लिखने की इस प्रकार की विधि को चरघातांकी संकेतन कहते हैं। यह विधि वैज्ञानिक कार्यों में व्यापक रूप में प्रयुक्त होती है। संख्या को व्यक्त करने की यह विधि परिमाण की कोटि निर्धारण को आसान बना देती है क्योंकि किसी भी संख्या का निकटतम दस का घात उसके परिमाण की कोटि कहा जाता है ।
● परिमाण की कोटि ज्ञात करने की विधि :–
सर्वप्रथम दी गयी संख्या को 10 के घात के रूप में निम्नलिखित प्रकार से लिखा जाता है -
संख्या = M × 10¹, जहाँ M एक ऐसी संख्या है, जिसका न्यूनतम मान एक तथा अधिकतम मान 10 से कम है।
अब यदि M का मान 5 से कम है तो उसे 1 माना जाता है तब परिमाण की कोटि x होती है। यदि M का मान 5 या 5 और 10 के बीच है तो उसे 10 माना जाता है तब परिमाण की कोटि x+1 होती है। भौतिक राशियों का मात्रक बदलने पर उसके परिमाण की कोटि बदल जाती है।
जैसे- प्रकाश का वेग = 3 × 10⁸ मी./से. में इसकी कोटि 8 है, किन्तु, प्रकाश का वेग =3 × 10¹⁰ से.मी./से. में इसकी कोटि 10 होती है।